धान को कंडुआ रोग से बचाने के नियंत्रण उपाय
कंडुआ रोग इस समय धान की फसल में अपना प्रभाव दिखा रहा है, कंडुआ रोग एक प्रमुख रोग है। बरसात के मौसम में चीनी की अधिकता के कारण यह रोग धान की फसल का भी मित्र है। फिर फल में कंडुआ रोग का बीजाणु धान की दोनों बालियों को प्रभावित करता है। इससे प्रभावित दोनों पर पीले रंग का पाउडर दिखाई देता है। डैनी धान के खेत में हैं, लेकिन बीमारी के कारण उनका वजन न सिर्फ बिगड़ गया है, बल्कि वजन भी कम हो गया है. जो मनोवैज्ञानिक इस रोग से अधिक प्रभावित हों उनकी बालियों को सावधानीपूर्वक खेत से उखाड़कर खेत से दूर नष्ट कर देना चाहिए। यह रोग फल में लगने के बाद ग्रेडी नॉक वर्ग की तरह भी काम नहीं करता है। इसलिए इसके लक्षण फल में दिखाई देने पर रोग का उपचार करना चाहिए।
कंडुआ रोग की रोकथाम कैसे करें
कंडुआ इस समय धान की फसल में अपना प्रकोप दिखा रहा है। इस बीमारी से किसान भी काफी परेशान हो गए हैं. इस रोग की रोकथाम कैसे की जा सकती है इसके लिए प्रति लीटर पानी में 2 ग्राम कॉपर ऑक्सीक्लोराइड घोलकर इसका प्रभाव धान के खेत में 50 प्रतिशत बालियान से पहले रहता है। या क्लोरथेनोनिल 75% यूपी दो ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर बड़े पैमाने पर प्रभावित व्यक्ति पर मास्क प्रभाव डालना चाहिए। या फिर इसके अलावा आप अपने धान की फसल में कैप्टन नामक दवा का भी प्रयोग कर सकते हैं.
धान का कंडुआ रोग (कर्नल स्मट)
सामान्यत: फसल पर परिपक्वता के बाद इस रोग के लक्षण प्रकट होते हैं। बीजों पर काले धब्बे दिख सकते हैं और पौधों के अन्य भागों पर काली धूल समान परत दिख सकती है। इस रोग के कारण दानों की गुणवत्ता पर असर होता है क्योंकि यह दानों के भ्रूणपोष स्थान पर काले बीजाणुओं का उत्पादन कर सकता है। कुछ प्रकार के इस रोग में विषाक्त पदार्थों का उत्पादन भी हो सकता है।
धान में कंडुआ रोग की दवा
रोग को नियंत्रित करने के लिए, कॉपर ऑक्सीक्लोराइड की प्रति लीटर पानी में दो ग्राम मात्रा में घोलकर खेत में बालियां आने से 50 प्रतिशत पहले छिड़काव करना फायदेमंद साबित हो सकता है। एक अन्य विकल्प है क्लोरथनोनिल 75 प्रतिशत डब्लू पी की प्रति लीटर पानी में दो ग्राम मात्रा में मिलाकर प्रभावित फसल पर छिड़काव करना।