गन्ने की किस्मों में सुधार की चुनौतियों का सामना करना: वैज्ञानिकों की सलाह और समाधान

गन्ने की किस्मों में सुधार की चुनौतियों का सामना करना: वैज्ञानिकों की सलाह और समाधान 

कुछ समय में आई चुनौतियों के पीछे का कारण देश में ‘मिठास क्रांति’ के जनक कहलाने वाले पद्मश्री डॉ. बक्शीराम ने अपने योगदान से गन्ना के क्षेत्र में अद्वितीय योगदान किया है। उन्होंने उन्नत वैरायटी 0238 को विकसित करके गन्ने के पैदावार और चीनी रिकवरी में बेहतरीन वृद्धि की है। लेकिन हाल कुछ समय से इस वैरायटी को भी रोगों की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। मुख्यत: मानसून सीजन में व्यापक वर्षा के बाद शिकंजा जैसे रोग इसे प्रभावित करते हैं।

पद्मश्री डॉ. बक्शीराम ने गन्ना क्षेत्र में अपने योगदान से देश को विशेष वैरायटी 0238 का परिचय दिलाया। इस वैरायटी ने गन्ने के पैदावार में 21 प्रतिशत तक वृद्धि करने में सहायक सिद्ध हुई है। उनके नेतृत्व में इसे विकसित करने में दस वर्ष लगे, लेकिन इसके परिणाम सराहनीय हैं। समाधान की दिशा में समस्याओं का समाधान खोजने के लिए स्वस्थ बीजों का प्रयोग और बुआई प्रक्रिया में सावधानी बरतने की आवश्यकता है। विशेषज्ञों के अनुसार, अच्छे बीज का चयन करने, भूमि की शोधन और पेडी प्रबंधन पर ध्यान देने से रोगों और कीटों की आशंका कम हो सकती है।

पौधों के बीम रोग: लक्षण और नियंत्रण के उपाय 

पौधों के बीम रोग एक आम समस्या हो सकती है जो उनकी विकास और उत्पादन में बाधाएं

पैदा कर सकती हैं। इन रोगों के प्रकट होने पर त्वरित कार्रवाई करना आवश्यक है ताकि उनका पूरी तरह से नियंत्रण किया जा सके। पूर्वानुमान: रोगों के लक्षण और कारण पूर्वानुमान बीम रोग के लक्षणों को समझने में महत्वपूर्ण होता है। बीम रोग के प्रमुख लक्षणों में असमान विकास, पत्तियों की पीलापन, पत्तियों के सिरों पर धब्बे, और पौधों की सूखासन्नता शामिल हैं। ये लक्षण अलग-अलग अवस्थाओं में प्रकट हो सकते हैं, और अगर उन्हें समय रहते पहचान लिया जाए, तो सही उपायों की तरफ कदम बढ़ाना महत्वपूर्ण होता है।

नियंत्रण के उपाय: 

  •  सही उर्वरक का प्रयोग: बीम रोग के नियंत्रण के लिए उपयुक्त उर्वरकों का प्रयोग करना आवश्यक है। बीजों को थाइरम और कार्बेन्डाजिम से उपचार करने से बचाव संभाव होता है।
  •  जीवाणुज प्रोफाइलिंग: पौधों की जीवाणुज प्रोफाइलिंग करके रोग की पहचान करना महत्वपूर्ण होता है। इसके आधार पर उपयुक्त उपायों का चयन किया जा सकता है।  
  • सही फसल प्रबंधन: स्वस्थ पौधों की उचित देखभाल और फसल प्रबंधन से बीम रोग का प्रसार कम हो सकता है। रोगी पौधों को जल्दी से निकालकर नष्ट करना भी महत्वपूर्ण होता है।
  • उर्वरकों का सही मात्रा में प्रयोग: नत्रजन, पोटाश, फास्फोरस, मैग्नीज, और चूना की सही मात्रा में खेत में प्रयोग करना आवश्यक होता है। इससे पौधों की स्वास्थ्य बढ़ती है और उनकी प्रतिरक्षा में सहायक होता है।
  • बीजों का उपयुक्त व्यवस्थापन: स्वस्थ और प्रमाणित बीजों का उपयोग करने से बीम रोग से बचाव संभाव होता है। उन्हें अच्छे से पूरी तरह से उपचारित करके ही बोना जाना चाहिए।
  • समय-समय पर पानी की प्रदान: खेत में समय-समय पर पानी की प्रदान करना बीम रोग के प्रसार को रोकने में मदद कर सकता है।

 

 

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